मन समर्पित तन समर्पित
आणि हे जीवन समर्पित
मातृभूमी वाटते देउ तुला आणिक काही
ऋण तुझे आई अतुलनिय मी अकिंचन
पण तुला ईतके पुन्हा करतो निवेदन
सजवुनी थाळीत आणिन भाल मी
स्वीकार कर तेव्हा पुन्हा माझे समर्पण
गान अर्पित, प्राण अर्पित रक्तही कण कण समर्पित
मातृभूमी वाटते देउ तुला आणिक काही
धार तलवारीस लावा द्या मला ती
ढाल कमरेला त्वरे बांधा चला ती
चरणधूली लावुनी भाळावरी मी
हाच आशिर्वाद आई ठेवतो मी
स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित जगण्याचा क्षण क्षण समर्पित
मातृभूमी वाटते देउ तुला आणीक काही
तोडतो मी मोह बंधन घ्या सलामी
मागतो घरदार अंगणाची क्षमा मी
आज एका हाती द्या तलवार माझी
आणि एका हाती ध्वज घेतो अता मी
हे सुमन घे हे गगन घे घरट्याचा तृण तृण समर्पित
मातृभूमी वाटते देउ तुला आणिक काही
- राम अवतार त्यागी (मूळ हिंदी कवी)
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मूळ कविता: तन समर्पित मन समर्पित
कवी: राम अवतार त्यागी
मराठी अनुवाद: तुषार जोशी, नागपूर
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मूळ हिंदी कविता:
मन समर्पित तन समर्पित
मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ मातृ-भू तुझको अभी कुछ और भी दूँ ॥
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है मैं अकिंचन
किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब
स्वीकार कर लेना दयाकर यह समर्पण
गान अर्पित प्राण अर्पित रक्त का कण-कण समर्पित ॥१॥
माँज दो तलवार को लाओ न देरी
बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो चरण की धूलि थोड़ी
शीष पर आशीष की छाया घनेरी
स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित आयु का क्षण-क्षण समर्पित ॥२॥
तोड़ता हूँ मोह का बन्धन क्षमा दो
गाँव मेरे व्दार घर आँगन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो
और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो
ये सुमन लो ये चमन लो नीड़ का तृण-तृण समर्पित ॥३॥
कवी: राम अवतार त्यागी
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